वसीयत : नैतिक शिक्षा का मूल्य Naitik Shiksha Stories in Hindi
Naitik Shiksha Stories in Hindi
मुहम्मद अली अपने इलाके के मशहूर व्यक्ति थे। खुद की कपडे की एक छोटी फैक्ट्री थी, अच्छा घर और एक कार भी थी। जिंदगी बड़ी ऐशोआराम से बितायी थी अली साहब ने। लेकिन मौत पे किसका बस चला है, जब अन्त समय नजदीक आया तो मुहम्मद अली ने सोचा कि अपने बेटे के नाम की वसीयत लिख दी जाये।
अली साहब ने वसीयत अपने बेटे के नाम करने के साथ ही एक छोटा सा पत्र लिखा। वो पत्र अपने बेटे को देते हुए बोले कि बेटे इस पत्र को तब ही पढ़ना जब तुम मेरी एक आखिरी इच्छा पूरी कर दो।
मेरी एक इच्छा है कि मेरे मरने बाद मुझे मेरे फटे हुए जुराब ही पहनाये जाएँ, ये मेरी दिली इच्छा है बेटा इसे जरूर पूरा करना और इसके बाद तुम ये पत्र खोलके पढ़ना।
पिता के मरने के बाद जब उनके शव को नहला के लाया गया तो बेटे ने पिता के वही पुराने मौजे निकाले और पैरों में पहनाना चाहा। लेकिन वहां बैठे धर्म गुरुओं ने बेटे को रोका कि शव पर कफ़न के आलावा कोई कपड़ा नहीं पहनाया जा सकता। बेटे ने बहुत जिद की, तमाम उलेमाओं और मौलवियों को इकठ्ठा किया गया।
बेटे की इच्छा थी कि पिता की ख्वाहिश को पूरा जरूर किया जाये लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। आखिर हार कर बेटे ने वो पिता का दिया हुआ पत्र खोला तो पढ़कर सन्न रह गया, उसके रौंगटे खड़े हो गए।
पत्र में लिखा था – “मेरे बेटे मैंने जिंदगी भर दौलत जमा की। फैक्ट्री खड़ी की, बड़ा घर बनाया और समाज में एक अच्छी पहचान भी है लेकिन इन सब के बावजूद भी मैं अपना एक फटा मौजा भी साथ नहीं ले जा पा रहा हूँ। मैंने सारी फैक्ट्री और दौलत तुम्हारे नाम कर दी, खूब पैसा कमाना लेकिन एक बात का याद रखना एक दिन मौत तुमको भी आएगी और तुम अपने साथ कुछ ना ले जा सकोगे।
अपने कर्मों को सदा ऊँचा रखना और इस धन को नेक काम और गरीबों की मदद में खर्च करना।”
बस यही एक पिता की वसीयत है और नसीहत भी…………
पढ़कर बेटे की आँखों से आंसू झलक आये।
सत्य ही तो है – चाहे लाख पैसा इकठ्ठा कर लो, तुम अपने कर्मों के सिवा इस दुनिया से कुछ नहीं ले जा सकते। खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाओगे
दोस्तों ये नैतिकता पर आधारित एक सुन्दर कहानी है, अगर एक कहानी की तरह पढोगे तो कुछ नहीं सीख पाओगे, इस कहानी को गम्भीरता से सोचना। इसे केवल पढ़ना नहीं है बल्कि इसकी शिक्षा को अपनाना है। तभी इस कहानी को लिखना सार्थक होगा। धन्यवाद!!