उड़न परी पी. टी. उषा जिन पर पूरे देश को गर्व है
कहा जाता है कि प्रतिभा किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती। प्रतिभावान इंसान उस सूरज के समान है जो समस्त संसार को अपनी रौशनी से चकाचौंध कर देता है। आज हम बात कर रहे हैं भारत की शान, उड़न परी पिलावुळ्ळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा यानि पी. टी. उषा(P T Usha in Hindi) की, जिन पर हर भारतीय को नाज होना चाहिए। पी. टी. उषा ने अब तक 101 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं और वो एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट मानी जाती हैं।
पी. टी. उषा खुद नहीं जानती थी अपनी क्षमता
27 जून 1964 केरल के कोझीकोड ज़िले के पय्योली ग्राम में जन्मी उषा{P T Usha} खुद नहीं जानती थीं कि वह दुनिया की सबसे तेज दौड़ने वाली खिलाड़ी बन सकती हैं। उषा का बचपन बहुत ही गरीबी में गुजरा है। खेलने की बात तो दूर है, उनके परिवार की इतनी भी आमदनी नहीं थी कि परिवार का गुजारा सही से चल पाता। उनका जन्म पय्योली गांव में हुआ इसलिए लोग उनको पय्योली एक्सप्रैस के नाम से भी जानते हैं।
एक दुबली पतली लड़की में कब दिखी अदभुत क्षमता
उषा को बचपन से ही थोड़ा तेज चलने का शौक था। उन्हें जहाँ जाना होता बस तपाक से पहुंच जाती फिर चाहे वो गाँव की दुकान हो या स्कूल तक जाना। बात उन दिनों की है जब उषा मात्र 13 साल की थीं और उनके स्कूल में कुछ कार्यक्रम चल रहे थे जिसमें एक दौड़ की प्रतियोगिता भी थी। पी. टी. उषा के मामा ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि तू दिन भर इधर से उधर भागती रहती है, दौड़ प्रतियोगिता में भाग क्यों नहीं लेती?
बस मामा की बात से प्रेरित होकर उषा ने दौड़ में भाग ले लिया। ये जानकर आपको हैरानी होगी कि उस दौड़ में 13 लड़कियों ने भाग लिया था जिनमें उषा सबसे छोटी थीं। जब दौड़ की शुरुआत हुई तो पी. टी. उषा इतनी तेज दौड़ी कि बाकि लड़कियाँ देखती ही रह गयीं और पी. टी. उषा ने कुछ ही सेकेंड में दौड़ जीत ली। वो दिन उषा के चमकते करियर का पहला पड़ाव था। इसके बाद उषा को 250 रुपये मासिक छात्रवृति मिलने लगी जिससे वो अपना गुजारा चलाती।
13 साल की उम्र में तोड़ा नेशनल रिकॉर्ड
वो दौड़ तो पी. टी. उषा ने आसानी से जीत ली लेकिन उस प्रतियोगिता में एक रिकॉर्ड बना जिसे कोई नहीं जानता था और ना ही किसी से उम्मीद की थी। यहाँ तक कि उषा खुद नहीं जानती थीं कि अनजाने में ही उन्होंने नेशनल रिकॉर्ड तोड़ दिया है। मात्र 13 वर्ष की आयु में उषा ने नेशनल रिकॉर्ड तोड़ डाला, जरा सोचिये कितना जोश रहा होगा उस लड़की में, कितना उत्साह भरा होगा उसकी रगों को, ये सोचकर ही मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं।
किसने पहचाना पी. टी. उषा की प्रतिभा को
1979 में पी. टी. उषा ने राष्ट्रीय विद्यालय प्रतियोगिता में भाग लिया। जहाँ बड़े बड़े लोग जानी मानी हस्तियां खेल देखने आई हुई थीं। उन खेलों में उषा ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। यहीं पे कोच ओ. ऍम. नम्बियार की नजर उनपर पड़ी तो उन्होंने पहली ही नजर में उषा में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। वो जान गए कि ये लड़की देश का गौरव बढ़ा सकती है। इसके बाद ओ. ऍम. नम्बियार ने उषा को अच्छा प्रशिक्षण देना शुरू किया। लगातार प्रयास से उषा अब इस काबिल हो चुकी थीं कि वह ओलम्पिक में भाग ले सकें।
ओलम्पिक में गौरवमयी प्रदर्शन
लोगों को कुछ अच्छा करने में सालों लग जाते हैं लेकिन गांव की दुबली पतली लड़की उषा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। मात्र 1 साल की कठिन मेहनत के बाद ही उषा इस काबिल हो चुकीं थीं कि ओलम्पिक में देश की अगुवाई कर सकें।
1980 में उषा ने मास्को ओलम्पिक में भाग लिया लेकिन पहली बार में वो ज्यादा सफल नहीं हो पायीं। ये पहला ओलम्पिक उनके लिए कुछ खास नहीं रहा। लेकिन कोच ओ. ऍम. नम्बियार ने भी हार नहीं मानी और उषा को और निखारने का काम शुरू कर दिया।
1982 में फिर से उषा ओलम्पिक में भारत की ओर से खेलीं और इस बार उषा ने हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊँचा कर दिया। अपने चमत्कारी प्रदर्शन की बदौलत उषा ने 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीते। इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर उषा ने कई बार अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को कई बार दोहराया। लोगों को ये जान के विश्वास ही नहीं होता था कि भारत की दुबली पतली उषा ओलंपिक में सेमीफ़ाइनल की रेस जीतकर अन्तिम दौड़ में पहुँच सकती हैं। 1984 के लांस एंजेल्स ओलंपिक खेलों में भी चौथा स्थान प्राप्त किया था। यह गौरव पाने वाली वे भारत की पहली महिला धाविका हैं।
बनीं एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका
उषा का एक के बाद एक कमाल का प्रदर्शन जारी रहा। जकार्ता की एशियन चैंम्पियनशिप में उषा ने स्वर्ण पदक जीतकर ये साबित कर दिया कि उनसे बेहतर कोई नहीं। ‘ट्रैक एंड फ़ील्ड स्पर्धाओं’ में उषा ने 5 स्वर्ण पदक और एक रजक पदक जीता और बन गयीं “एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका”। समस्त दुनियां के खेल विशेषज्ञ और खेल देखने वाले लोग उस समय हैरान रह गए जब कुवैत में एशियाई ट्रैक और फ़ील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई कीर्तिमान के साथ उन्होंने 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता।
P T Usha की उपलब्धियां
पी. टी. उषा की उपलब्धियों को एक लेख में लिखना तो सम्भव ना हो सकेगा। सैकड़ों बार उन्होंने देशवासियों को गौरवान्वित महसूस कराया। उषा ने अब तक 101 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। 1985 में उन्हें पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
वर्ष | विवरण |
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1980 |
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1981 |
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1982 |
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1983 |
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1984 |
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1985 |
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1986 |
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1987 |
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1988 |
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1989 |
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1990 |
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1995 |
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1996 |
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1997 |
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1998 |
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1999 |
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मेरा इस पोस्ट को पढ़ने वाले लोगों से एक आग्रह है कि हमारे देश की शान, उड़नपरी के लिए एक बार नीचे कॉमेंट में “Salute You P T Usha” जरूर लिखिए।
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