कबीर दास के 50 लोकप्रिय दोहे- Kabir Das Ke Dohe with Hindi Meaning
कबीर दास जी की वाणी में अमृत है। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर प्रहार करने का कार्य किया है। कबीर दास जी मुख्य भाषा पंचमेल खिचड़ी है जिसकी वजह से सभी लोग उनके दोहों को आसानी से समझ पाते हैं। जब भी दोहे शब्द सुनाई देता है, तो सबसे ऊपर हमारे जेहन में कबीरदास जी का नाम ही आता है। कबीर दास जी ने सभी धर्मों की बुराइयों और पाखंडों पर व्यंग्य किया है। सभी धर्मों के लोग कबीर दास के मतों को मानते आये हैं और उनके दोहों में जो सीख है, वह हर व्यक्ति को प्रभावित करती है।
इस लेख में हम संत कबीर के 50 सबसे लोकप्रिय दोहे (kabir das ke dohe) पढ़ेंगे और साथ ही उन दोहों के हिंदी अर्थ भी जानेंगे –
दोहा(Dohe) –
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये |
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
दोहा(Dohe) –
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूर(ऊँचाई ) पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।
संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित
कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।
देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।।
अर्थ – संत कबीर कहते हैं कि जब तक ये शरीर सही सलामत है, तब तक दूसरों को दान करते रहिये, दूसरों के लिए अच्छे कार्य करते रहिए| जब यह देह राख हो जाएगी फिर इस सुन्दर शरीर को कोई नहीं पूछेगा, तुम्हारी देह शव बन जाएगी| अतः अच्छे कार्य करने का यही सही समय है|
दोहा(Dohe) –
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ॥
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जब से पाने चाह और चिंता मिट गयी है, तब से मन बेपरवाह हो गया है| इस संसार में जिसे कुछ नहीं चाहिए बस वही सबसे बड़ा शहंशाह है|
दोहा(Dohe) –
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥
अर्थ – कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए
दोहा(Dohe) –
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष (जहर) से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीश(सर) देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है
दोहा(Dohe) –
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज |
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||
अर्थ – अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है
दोहा(Dohe) –
निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें |
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि निंदक(हमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले) लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं।
दोहा(Dohe) –
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय |
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ अर्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है।
दोहा(Dohe) –
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ||
अर्थ – दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं
दोहा(Dohe) –
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे |
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ||
अर्थ – जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी
दोहा(Dohe) –
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात |
देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले के समान हैं जो पल भर में बनती हैं और पल भर में खत्म। जिस दिन आपको सच्चे गुरु के दर्शन होंगे उस दिन ये सब मोह माया और सारा अंधकार छिप जायेगा
दोहा(Dohe) –
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये |
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ||
अर्थ – चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि चक्की के 2 पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता
दोहा(Dohe) –
मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार |
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ||
अर्थ – मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। अर्थात आज आप जवान हैं कल आप भी बूढ़े हो जायेंगे और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कली, कल फूल बनेगी।
दोहा(Dohe) –
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब |
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे
दोहा(Dohe) –
ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग |
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।
दोहा(Dohe) –
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप |
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीँ धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है, और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है
दोहा(Dohe) –
जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान |
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ||
अर्थ – जिस इंसान अंदर दूसरों के प्रति प्रेम की भावना नहीं है वो इंसान पशु के समान है
दोहा(Dohe) –
जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश |
जो है जा को भावना सो ताहि के पास ||
अर्थ – कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बावजूद भी दोनों कितने पास है। जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा खुद कमल के पास आ गया हो। वैसे ही जब कोई इंसान ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं।
दोहा(Dohe) –
जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान |
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ||
अर्थ – साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करिये, उनसे ज्ञान लीजिए। मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो।
दोहा(Dohe) –
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए |
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ||
अर्थ – अगर आपका मन शीतल है तो दुनियां में कोई आपका दुश्मन नहीं बन सकता
दोहा(Dohe) –
ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग |
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया। प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है।
दोहा(Dohe) –
तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार |
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ||
अर्थ – तीर्थ करने से एक पुण्य मिलता है, लेकिन संतो की संगति से 4 पुण्य मिलते हैं। और सच्चे गुरु के पा लेने से जीवन में अनेक पुण्य मिल जाते हैं
दोहा(Dohe) –
तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय |
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि लोग रोजाना अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ़ नहीं करता। जो इंसान अपने मन को भी साफ़ करता है वही सच्चा इंसान कहलाने लायक है।
दोहा(Dohe) –
प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए |
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीश(क्रोध, काम, इच्छा, भय) त्यागना होगा।
दोहा(Dohe) –
जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही |
ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है। ऐसा घर तो मरघट के समान है जहाँ दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं
दोहा(Dohe) –
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए।
दोहा(Dohe) –
पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत |
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।
दोहा(Dohe) –
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही |
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार(मैं) था, तब मेरे ह्रदय में हरी(ईश्वर) का वास नहीं था। और अब मेरे ह्रदय में हरी(ईश्वर) का वास है तो मैं(अहंकार) नहीं है। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है
दोहा(Dohe) –
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए |
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो उसे नहाने का क्या फायदा, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में तेज बदबू आती है।
दोहा(Dohe) –
प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय |
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ||
अर्थ – जिसको ईश्वर प्रेम और भक्ति का प्रेम पाना है उसे अपना शीश(काम, क्रोध, भय, इच्छा) को त्यागना होगा। लालची इंसान अपना शीश(काम, क्रोध, भय, इच्छा) तो त्याग नहीं सकता लेकिन प्रेम पाने की उम्मीद रखता है
दोहा(Dohe) –
कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर |
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है वही सज्जन पुरुष है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फायदा।
दोहा(Dohe) –
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि वे लोग अंधे और मूर्ख हैं जो गुरु की महिमा को नहीं समझ पाते। अगर ईश्वर आपसे रूठ गया तो गुरु का सहारा है लेकिन अगर गुरु आपसे रूठ गया तो दुनियां में कहीं आपका सहारा नहीं है।
दोहा(Dohe) –
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी |
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि तू क्यों हमेशा सोया रहता है, जाग कर ईश्वर की भक्ति कर, नहीं तो एक दिन तू लम्बे पैर पसार कर हमेशा के लिए सो जायेगा
दोहा(Dohe) –
नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय |
कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि चन्द्रमा भी उतना शीतल नहीं है और हिम(बर्फ) भी उतना शीतल नहीं होती जितना शीतल सज्जन पुरुष हैं। सज्जन पुरुष मन से शीतल और सभी से स्नेह करने वाले होते हैं
दोहा(Dohe) –
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता। जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान् है
दोहा(Dohe) –
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय |
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ||
अर्थ – जब मृत्यु का समय नजदीक आया और राम के दूतों का बुलावा आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संत और सज्जनों की संगति में है उतना आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा।
दोहा(Dohe) –
शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान |
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ||
अर्थ – शांत और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है। जिसके पास शीलता है उसके पास मानों तीनों लोकों की संपत्ति है।
दोहा(Dohe) –
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये |
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके। मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाये।
दोहा(Dohe) –
माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए |
हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि मक्खी पहले तो गुड़ से लिपटी रहती है। अपने सारे पंख और मुंह गुड़ से चिपका लेती है लेकिन जब उड़ने प्रयास करती है तो उड़ नहीं पाती तब उसे अफ़सोस होता है। ठीक वैसे ही इंसान भी सांसारिक सुखों में लिपटा रहता है और अंत समय में अफ़सोस होता है।
दोहा(Dohe) –
ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार |
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार तो माटी का है, आपको ज्ञान पाने की कोशिश करनी चाहिए नहीं तो मृत्यु के बाद जीवन और फिर जीवन के बाद मृत्यु यही क्रम चलता रहेगा
दोहा(Dohe) –
कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार |
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता। वहीँ सज्जन विचार और बोल अमृत के समान हैं
दोहा(Dohe) –
आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर |
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है। चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे
दोहा(Dohe) –
ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय |
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।
दोहा(Dohe) –
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदला जा रहा है।
दोहा(Dohe) –
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय |
भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती। भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है।
दोहा(Dohe) – कागा का को धन हरे, कोयल का को देय |
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता लेकिन फिर भी कौआ लोगों को पसंद नहीं होता। वहीँ कोयल किसी को धन नहीं देती लेकिन सबको अच्छी लगती है। ये फर्क है बोली का – कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है।
दोहा(Dohe) –
लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट |
अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, हर जगह राम बसे हैं। अभी समय है राम की भक्ति करो, नहीं तो जब अंत समय आएगा तो पछताना पड़ेगा।
दोहा(Dohe) –
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि तिनके को पाँव के नीचे देखकर उसकी निंदा मत करिये क्यूंकि अगर हवा से उड़के तिनका आँखों में चला गया तो बहुत दर्द करता है। वैसे ही किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए।
दोहा(Dohe) –
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
अर्थ – कबीर दास जी मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! दुनिया का हर काम धीरे धीरे ही होता है। इसलिए सब्र करो। जैसे माली चाहे कितने भी पानी से बगीचे को सींच ले लेकिन वसंत ऋतू आने पर ही फूल खिलते हैं।
दोहा(Dohe) –
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि माया(धन) और इंसान का मन कभी नहीं मरा, इंसान मरता है शरीर बदलता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती।
दोहा(Dohe) –
मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि मांगना तो मृत्यु के समान है, कभी किसी से भीख मत मांगो। मांगने से भला तो मरना है
दोहा(Dohe) –
ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि.
मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जैसे आँख के अंदर पुतली है, ठीक वैसे ही ईश्वर हमारे अंदर बसा है। मूर्ख लोग नहीं जानते और बाहर ही ईश्वर को तलाशते रहते हैं।
दोहा(Dohe) –
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनियां रोये और हम हँसे।
दोहा(Dohe) –
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि किताबें पढ़ पढ़ कर लोग शिक्षा तो हासिल कर लेते हैं लेकिन कोई ज्ञानी नहीं हो पाता। जो व्यक्ति प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ ले और वही सबसे बड़ा ज्ञानी है, वही सबसे बड़ा पंडित है।
दोहा(Dohe) –
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ – किसी विद्वान् व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है म्यान का नहीं।
दोहा(Dohe) –
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ
अर्थ – जो लोग लगातार प्रयत्न करते हैं, मेहनत करते हैं वह कुछ ना कुछ पाने में जरूर सफल हो जाते हैं| जैसे कोई गोताखोर जब गहरे पानी में डुबकी लगाता है तो कुछ ना कुछ लेकर जरूर आता है लेकिन जो लोग डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रहे हैं उनको जीवन पर्यन्त कुछ नहीं मिलता
दोहा(Dohe) –
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत
अर्थ – इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि दूसरों के अंदर की बुराइयों को देखकर उनके दोषों पर हँसता है, व्यंग करता है लेकिन अपने दोषों पर कभी नजर नहीं जाती जिसका ना कोई आदि है न अंत
दोहा(Dohe) –
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय
अर्थ – कबीरदास जी इस दोहे में बताते हैं कि छोटी से छोटी चीज़ की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए क्यूंकि वक्त आने पर छोटी चीज़ें भी बड़े काम कर सकती हैं| ठीक वैसे ही जैसे एक छोटा सा तिनका पैरों तले कुचल जाता है लेकिन आंधी चलने पर अगर वही तिनका आँखों में पड़ जाये तो बड़ी तकलीफ देता है
दोहा(Dohe) –
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं है और ना ही ज्यादा चुप रहना भी अच्छा है जैसे ज्यादा बारिश अच्छी नहीं होती लेकिन बहुत ज्यादा धूप भी अच्छी नहीं है
दोहा(Dohe) –
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन,
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन
अर्थ – केवल कहने और सुनने में ही सब दिन चले गये लेकिन यह मन उलझा ही है अब तक सुलझा नहीं है| कबीर दास जी कहते हैं कि यह मन आजतक चेता नहीं है यह आज भी पहले जैसा ही है|
दोहा(Dohe) –
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार
अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता
दोहा(Dohe) –
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि
अर्थ – जो व्यक्ति अच्छी वाणी बोलता है वही जानता है कि वाणी अनमोल रत्न है| इसके लिए हृदय रूपी तराजू में शब्दों को तोलकर ही मुख से बाहर आने दें|
दोहा(Dohe) –
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना
अर्थ – हिन्दूयों के लिए राम प्यारा है और मुस्लिमों के लिए अल्लाह (रहमान) प्यारा है| दोनों राम रहीम के चक्कर में आपस में लड़ मिटते हैं लेकिन कोई सत्य को नहीं जान पाया|
दोहा(Dohe) –
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत |
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत ||
अर्थ – सज्जन पुरुष किसी भी परिस्थिति में अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे कितने भी दुष्ट पुरुषों से क्यों ना घिरे हों| ठीक वैसे ही जैसे चन्दन के वृक्ष से हजारों सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन वह कभी अपनी शीतलता नहीं छोड़ता|
दोहा(Dohe) –
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि सबके साथ मेलजोल के साथ रहना चाहिए। ना कोई दोस्त है और ना ही कोई दुश्मन, सभी एक समान हैं और सबके साथ अच्छा व्यव्हार करना चाहिए
दोहा(Dohe) –
कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई
अर्थ – संत कबीर कहते हैं कि समुंदर की लहरें अपने साथ मोती बिखेरती आती हैं। बगुला मोती नहीं पहचाना जबकि हंस उन मोतियों को पहचानकर उन्हें खा लेता है। अर्थात जिस चीज़ का महत्व जो व्यक्ति समझता है वही उसका फायदा ले सकता है, जिस व्यक्ति को महत्त्व नहीं पता, वह उस चीज़ को पाकर भी उसका लाभ नहीं उठा पाता
दोहा(Dohe) –
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब गुड़ को ग्राहक मिल जाता है तो वह अच्छे दामों में बिकता है और अगर गुड़ को ग्राहक नहीं मिलता तो वह कोड़ी के दामों में जाता है। अर्थात किसी वस्तु का सही महत्त्व समझने वाला ही उसका सही मूल्यांकन कर सकता है, अन्यथा मूर्ख व्यक्ति के लिए हीरा और पत्थर दोनों के ही समान होते हैं।
संत कबीरदास के सभी दोहे मानव सोच पर व्यंग्य करते प्रतीत होते हैं| संत कबीर के ये दोहे आपने बचपन में किताबों में भी पढ़े होंगे| दोहों के माध्यम से जो कबीरदास जी ने सन्देश दिया है वह वाकई सोच परिवर्तित कर देने वाला है| अगर आपके पास भी कुछ अच्छे कबीर दास के दोहे हैं तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं ताकि हम उन्हें भी यहाँ शामिल कर सकें| धन्यवाद!!!
yah bahut achcha laga thank you.
Hanji u r right
Awesome दोहे….. ??
Very meaningful
????????
very good
I am thankful
Great dohess
thanks bahut achha laga
Good
Singer Atar Singh atal mob
8889928850 village gastoli to kailaras district Morena MP Madhya Pradesh India
madhur bhasa par done bhi lagaaye bhai
बहुत अच्छे दोहे है।
और अधिक दोहे पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर जाये।
mybestscheme.com/kabir-ke-dohe
बहुत ही अच्छे दोहे है इन दोहो मे हम जीवन की कई प्रेरणा मिलती हैं यही प्रेरणा कबीर को हिंदी साहित्य के मे एक महान कवि बनाती हैं
Very nice explanation of every dohas Hindivibhag
bahut hi achhi jankari share ki hai thank you
Excellent dohe .
Boht boht sukriya ji Apka boht acha lga nice 💖💖
I like Kabir das done.
Thanks
i LIKE KABIR DAS DOHE
Read some more Kabir ke dohe here – poetry.namasteindia.info/2018/04/kabir.html
Kabir ke dohe bahut hi inspiring hote hain….great thoughts
Just amazing. Meri badi behen hamesha mujhe dohe sunati thi sanskrit me.
Aaj itne sare sare dohe padhe wo bhi meaning k sath.
Bohot inspirational hai. Thanks a bunch 💐😇
संत कबीर के दोहे से आप बहुत अच्छी सीख प्राप्त कर सकते है |
Gossip Junction से भी आप बहुत से दोहे पढ़ सकते हैं |
Thanks .Very nice
this is amazing but there are some dohe missing. please make sure that there is no dohe is missing. Thanks
very helpful
Very good…like it
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Kabir ke dohe
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