कैसे फैलता है अंधविश्वास Andhvishwas Story in Hindi
कुप्रथा और अंधविश्वास पर कहानी
बहुत पुरानी बात है किसी गाँव में एक मंदिर हुआ करता था। उस मंदिर में एक पुजारी थे जो बड़े विद्वान् और सज्जन थे। एक दिन पुजारी जी मंदिर में पूजा अर्चना कर रहे थे कि अचानक कहीं से एक छोटा कुत्ता मंदिर में घुस आया।
वो छोटा सा कुत्ता बड़ा भूखा और प्यासा लग रहा था। पुजारी जी को दया आयी और उन्होंने पूजा बीच में ही रोककर उस कुत्ते को खाना खिलाया और पानी दिया। अब पुजारी जी फिर से पूजा करने बैठ गए लेकिन कुत्ता वहां से नहीं गया।
कुत्ता अपनी पूंछ हिलाते हुए पुजारी जी की गोद में बैठने की कोशिश करने लगा। पुजारी जी ने अपने शिष्य को बुलाया और कहा जब तक मेरी पूजा संपन्न ना हो इस कुत्ते को बाहर पेड़ से बांध दो। शिष्य ने वैसा ही किया।
अब वो छोटा कुत्ता मंदिर में ही रहने लगा और जब भी पुजारी जी पूजा करते वो गोद में बैठने की कोशिश करता और हर बार पुजारी जी उसे पेड़ से बंधवा देते। अब यही क्रम रोज चलने लगा।
एक दिन अकस्मात पुजारी जी की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उनके शिष्य को पुजारी बनाया गया अब वो शिष्य जब भी पूजा करता तो कुत्ते को पेड़ से बांध देता। एक दिन एक हादसा हुआ कि उस कुत्ते की भी मृत्यु हो गयी। अब मंदिर के सभी सदस्यों और शिष्यों ने आपस में एक मीटिंग की और सोचा कि हमारे गुरूजी जब भी पूजा करते थे तो कुत्ते को पेड़ से बंधवाते थे।
अब कुत्ते की मृत्यु हो चुकी है लेकिन पूजा करने के लिए किसी कुत्ते को पेड़ से बांधना बहुत जरुरी है क्योंकि हमारे गुरूजी भी ऐसा करते थे। बस फिर क्या था गाँव से एक नए काले कुत्ते को लाया गया और पूजा होते समय उसे पेड़ से बांध दिया जाता।
आपको विश्वास नहीं होगा कि उसके बाद ना जाने कितने ही पुजारियों की मृत्यु हो चुकी थी और ना जाने कितने ही कुत्तों की मृत्यु हो चुकी थी लेकिन अब ये एक परम्परा बन चुकी थी। पूजा होते समय पुजारी पेड़ से एक कुत्ता जरूर बंधवाता था।
जब कोई व्यक्ति इस बात को पुजारी से पूंछता तो वो बोलते कि हमारे पूर्वज भी ऐसा ही किया करते थे ये हमारी एक परम्परा है।
दोस्तों इसी तरह हमारे समाज में भी ऐसे ही ना जाने कितने अन्धविश्वास पाल लिए जाते हैं। हमारे पूर्वजों ने जो किया वो हो सकता है उस समय उन चीजों का कुछ विशेष कारण रहा हो लेकिन आज हम उसे एक परम्परा मान लेते हैं।
ये केवल किसी एक व्यक्ति विशेष की बात नहीं है बल्कि हमारे समाज में हर इंसान कुछ ना कुछ अन्धविश्वास जरूर मानता है और जिससे भी पूछो वो यही कहता है कि ये तो हमारी परम्परा है हमारे यहाँ सदियों से चली आयी है।
जरा अपना भी दिमाग लगाओ और इन रूढ़िवादी बातों से ऊपर उठो तभी आपका विकास संभव है।
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धन्यवाद!!!
Bahute badhiya
Really I like this story.
very very very good story
Aapne bilkul sahi kahaa Sirji,sty kuch or hota he or hum kuch or hi maankar chlte rehte he
Sahi hai..ye important Ni hai Jo dusre karte hai vaisa hum bhi kare..but hum kya karte hai ye really important hai..
Gyanwardhak. Mujhe bahut pasand aya.
Bilkul Pefract Soch Di Hai…………..
Sir, it is best but please provide the feature of downloading stories as PDF.
Awesome Story…
The story is very importaent hamare life may bhi kuch ase batte hote hai jo hamare bado nae ki aur hum bhi karte hai hume hume hune battwo ko door karna hai
Superb
Ye lekh mujhe bahut achha laga.Ha ye toh sach hai ki andhvishwas bahut jayada hai jaise tuesday, thursday, saturday ko saving, nakhun or baal nhi katna chahiye. Thursday ko kisi ko paisa nhi dena chahiye or bhi na jaane kitne aisi baatein hain jise log maante hai. Dhanyawad
very good story
Very good story
Very good think
kahani muje bahut pasand aayi
very nice kahani
samaj ko andhvishwash se mukt karanahi cahi ye.
परंपरा से चले आ रहे अंध-विश्वास एवं रूढ़िवादी प्रवृत्तियों को हम बिना सोचे-विचारे अपना लेते हैं यही हमारी मूर्खता है। सामान्य व्यक्ति ही नहीं प्रबुद्ध जन भी इनका शिकार हो जाते हैं। अतएव हम सबका यह कर्तव्य है कि कम से कम इनको बढ़ावा न दें और हो सके तो समाज से इन कुरीतियों को उखाड़ फेंके। हमारी बुद्धिमानी इसी में है तथा समाज की भलाई भी।
चाहे कैसे भी जियो पर अंधविश्वास में कभी न जियो इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है
VERY GREAT STORY
satya wachn
सही बात है ऐसा ही हो रहा है दुनिया मे !