शहीद दिवस 23 March – Shaheed Diwas in Hindi – शहीदों को श्रद्धांजलि

March 22, 2017

शहीद दिवस भारत में 23 मार्च को मनाया जाता है। शहीद दिवस (Shaheed Diwas) मनाने का उद्देश्य, भारत माता के लिए अपने प्राणों की कुर्बानी देने वाले वीरों को श्रद्धांजलि प्रदान करना है। 23 मार्च 1931 को ही भारत के सबसे क्रान्तिकारी देशभक्त सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ाया गया था। इन वीरों को नमन और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है।

Shaheed Diwas 23 March

कैसे भड़की थी क्रांति-

1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया। उस समय लाला लाजपत राय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे और उन्होंने साइमन कमीशन का भारी विरोध किया। लाला जी लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में एक रैली को संबोधित कर रहे थे। तब ब्रिटिश सरकार ने उस रैली पर लाठी चार्ज करा दिया।

लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आयीं और इस घटना के करीब 3 हफ्ते बाद लाला जी का देहांत हो गया। लाला लाजपत राय जी ने अंग्रेजों से कहा था कि – “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।” उनकी ये बात भी सही साबित हुई, लाला जी के स्वर्ग सिधारने के बाद पूरे देश में आक्रोश फूट पड़ा और एक नयी क्रांति का जन्म हुआ और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने आक्रोशित होकर लाला जी की मौत का बदला लेने का निर्णय लिया।

लाला जी की मृत्यु के करीब एक महीने बाद ही 17 दिसम्बर 1928 को सरदार भगत सिंह ने ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को गोली से मार दिया गया। उसी समय से ब्रिटिश सरकार, सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के आक्रोश को भांप गयी थी और जल्द ही उनको पकड़ना चाहती थी।

8 अप्रैल 1929 को चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भगत सिंह ने “सेंट्रल असेम्बली” में बम फेंका। दुर्भाग्यवश भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को पकड़ लिया गया और उनको आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी।

जेल में रहते हुए ही भगत सिंह पर “लाहौर षड्यंत्र” का केस भी चला। इसी बीच चंद्रशेकर आजाद के सबसे विश्वासपात्र क्रांतिकारी “राजगुरु” को भी गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत में मुकदमा चला और भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गयी।

एक दिन पहले दी गयी फांसी

इन तीनों क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को फांसी होनी थी। लेकिन ब्रिटिश सरकार को डर था कि देश की जनता विरोध में ना उतर आये इसलिए उन्होंने एक दिन पहले ही 23 मार्च 1931 को सांय करीब 7 बजे भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया। इन सभी के शव को इनके परिवार के लोगों को नहीं दिया गया और रात में ही इनका अंतिम संस्कार सतलज नदी के किनारे किया गया।

सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हँसते-हँसते फांसी के फंदे को चूम लिया। ये क्रांतिकारी चाहते तो फांसी से बच सकते थे लेकिन इनको उम्मीद थी कि इनके बलिदान से देश की जनता में क्रांति भड़केगी और भारत की जनता ब्रिटिश सरकार को जड़ उखाड़ फेंकेगी।

ठीक ऐसा ही हुआ, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने के बाद जनता का आक्रोश बहुत भड़क गया। पूरे देश में आजादी के लिए आंदोलन और तेज हो गये और एक बड़ी क्रांति का उदय हुआ।

आज सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हमारे दिलों में वो आज भी जिन्दा हैं। जिस क्रांति की वजह से उन लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी उस क्रांति को सदैव हमें अपने दिलों में जलाये रखना है।

सभी से निवेदन है कि 23 मार्च यानि शहीद दिवस के दिन थोड़ी देर के लिए भारत के वीर क्रांतिकारियों को एक बार जरूर याद करें और उनको श्रद्धांजलि प्रदान करें और उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें।

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