Sant Shiromani Sen Ji Maharaj Story संत शिरोमणी सेनजी महाराज के जीवन की एक घटना
यह साउथ इंडिया के एक गाँव की कहानी है, यहाँ पर आज बाजार का दिन था| आस – पास के लोग सफ्ताह भर की कारीगरी से तैयार सामान को बाजार लेकर जा रहे थे| सफ्ताह भर में तैयार किये गये सामानों को बेचकर वहाँ से अपने जरुरत के सामान खरीदके फिर गाँव में लौट कर पुनः सामानों के निर्माण में लग जाना, यही उनका काम था|
एक जगह पर कुछ लोग खड़े होकर आपस में कुछ बात कर रहे थे, उसी समय एक आदमी अपने सर पर मोटे कपड़ो का थान लेकर गुजर रहा था| जो लोग वहाँ पर खड़े होकर बात कर रहे थे उनमें से एक आदमी इस कपड़े वाले को जानता था| उसने बाकी सब लोगों से कहा कि इस कपड़े वाले आदमी को कभी गुस्सा नहीं आता है| यह सुनकर सब लोग हँसने लगे और उनमें से एक ने बोला कि मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता, जब तक मैं खुद देख नहीं लेता| पहला आदमी बोला विश्वास नहीं है तो बुला कर देख लो|
अब तक सर पर गठरी रखे वह थान वाला उनके पास आ चुका था, उस आदमी ने उसे पास बुलाकर उनमें से एक ने कपड़े की थान खरीदने का नाटक किया| उसने बड़े ही प्यार से पूछा कपड़े के थान का रेट क्या है ?
थान वाला आदमी बोला – 10 रुपया का है….
उसके बाद उस आदमी ने थान के कपड़े को फाड़ दिया और बोला अब बताओ इसकी कीमत कितनी है
थान वाले ने बड़े प्यार से बोला- अब इसकी कीमत भी आधी है
सब लोग उसको देख रहे थे कि उसको बिल्कुल भी गुस्सा नहीं आया और वह बहुत ही आराम से बात कर रहा था| इसके बाद वह आदमी उस थान के टुकड़े – टुकड़े कर के भाव पूछता ही रहा और जब कुछ नहीं बचा तो उस थान वाले से बोला कि मैं इस टुकड़े का क्या करूँगा ? तुम ही इसको रख लो |

थान वाले आदमी ने अपने सारे कपड़े के टुकड़ों को बाँधा और बिना किसी गुस्सा और परेशानी के वहाँ से चलने लगा, इस पर वहाँ खड़ा एक आदमी बोल पड़ा कि यह तो आप के एक सप्ताह का श्रम था, अब आप खुद क्या खायेंगे और अपने परिवार को क्या खिलायेंगे?
थान वाले ने बोला – मेरे तो एक सप्ताह की कमाई थी, पर थान फाड़ने वाले ने पूरे जीवन में जो ज्ञान और व्यवहार कमाया था वो उसने दिखा दिया| अगर परमात्मा को मुझको और मेरे परिवार को भूखा रखना है तो मेरे लाख चाहने के बाद भी हम लोग भूखे ही रहेंगे, यहाँ जो कुछ हो रहा है वह परमात्मा की मर्जी से हो रहा था| हमें प्रभु की मर्जी में संतुष्ट रहने की आदत डाल लेनी चाहिए|
यह सुनकर वह आदमी जिसने थान के टुकड़े किये थे, शर्म से लाल हो गया और वहाँ से चला गया |
भगवान् की मर्जी को सर्वोपरि मानने वाले वो संत थे – संत शिरोमणि सेन जी महाराज ,जिनको साउथ इंडिया का कबीर कहा जाता है |
यह एक गेस्ट पोस्ट है जो हमें धर्मेन्द्र प्रजापति जी ने भेजी है – उनकी वेबसाइट – http://www.hindibabu.com/
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Thanks a lot Pawan Sir For publishing My Content
great story which inspire all human being.
It’s really inspiration story. Thanks for sharing with us.
very nice story
Bahut gajab kahani hai
संतों की सहनशीलता के क्या कहने। उन्होंने इस संसार को अच्छी तरह देख-परख लिया है। संसार की कोई घटना या किसी का व्यवहार उन्हें उनके मार्ग से डिगा नहीं सकता। ऐसी मानसिकता का विकास ही हमारे जीवन का लक्ष्य है जो प्रत्येक प्राणी को प्राप्त करना है।