बुजुर्ग का पर्स : मोह माया में फंसे इंसान का जीवन

July 1, 2017

मोह माया इंसान को जीवनभर जकड़े रहती है

एक बुजुर्ग एक ट्रेन के स्लीपर क्लास में यात्रा कर रहा था। वह एक तीर्थयात्रा पर निकला था। सुबह के वक्त एक युवक ने अपने दूसरे सह-यात्रियों से पूछा कि क्या किसी का पर्स खोया है। बुजुर्ग ने कहा कि उसका पर्स खोया है।

युवक ने पूछा: पर्स के अंदर क्या है?

बुजुर्ग ने कहा कि उसके पर्स में बाल कृष्ण की फोटो है।

युवक से अपना पर्स वापस लेते समय बुजुर्ग ने कहा: इस पर्स की भी एक कहानी है। सह-यात्रियों को आश्चर्य हुआ कि पर्स की क्या कहानी हो सकती है। उन्होंने बुजुर्ग को पर्स की कहानी बताने के लिए कहा।

बुजुर्ग ने शुरू किया: जब मैं सातवीं कक्षा में था तो मेरे पिता ने मेरे जन्मदिन पर मुझे इस पर्स को उपहार में दिया था। मैंने उस समय अपने प्रिय माता-पिता की तस्वीर इसमें लगाई।

जब मैं कॉलेज में था, तब मैंने अपने माता-पिता की तस्वीर निकाल दी और इसमें अपनी तस्वीर लगा ली क्योंकि मैं अपने को युवा और सुंदर समझता था।

शादी के बाद मैं अपनी पत्नी से ज्यादा प्यार करता था इसलिए मैंने अपनी तस्वीर हटाकर पत्नी की तस्वीर लगा ली।

इसके बाद हमारा बेटा हुआ तो मैंने पत्नी की तस्वीर को हटा कर प्रिय बेटे की तस्वीर लगा ली।

अब पांच साल पहले मेरी पत्नी का देहांत हो गया और मेरा एकमात्र पुत्र अपनी पत्नी और बेटी-बेटा के साथ दिल्ली में रहता है। वह नौकरी में इतना व्यस्त है कि उसके पास मुझसे बात करने का समय नहीं है। नाती-नातिन अपने कंप्यूटर गेम, टीवी शो, गृह-कार्य, स्कूली शिक्षा, दोस्तों आदि में व्यस्त हैं। वे शायद ही कभी मेरे पास आते हैं। एक बार, जब मैं बच्चों से बात कर रहा था तो बहू ने मुझे डांटा कि मैं बच्चों को अपने समय की गुजरी हुई बातें बताकर उनका समय खराब न करूँ।

अब दुनिया में मैं अकेला रह गया था, असहाय और हतोत्साह। परिवार में कोई भी मुझसे बात करने के लिए नहीं था। आखिरकार मुझे भगवान कृष्ण को बच्चे के रूप में प्यार करना पड़ा और मैं उनकी तस्वीर इस पर्स में रखता हूँ।

वह जीवन में मेरा सर्वश्रेष्ठ साथी साबित हुआ है। यद्यपि वह हमेशा से मेरे साथ था, पर मैंने कभी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। अब मैं अकेला नहीं हूँ, वह मुझे इतना व्यस्त रखता है कि मुझे किसी और के बारे में सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ती। वह वास्तव में मेरे दिल की धड़कन है। मैं उसे कैसे भूल सकता हूं?

मित्रों यह घटना आज के युग में ज्यादातर व्यक्तियों के साथ घटती है| जब हम बच्चे होते हैं तो माँ बाप हमारे हीरो होते हैं, जब हम थोड़े बड़े होते हैं युवावस्था में खुद को बेहद सुन्दर मानते हैं और शादी के बाद तो पत्नी ही सबसे प्यारी हो जाती है,, फिर बच्चे,,, आदि आदि…

लेकिन अंदर छिपे उस ईश्वर के रूप को हम कभी नहीं देख पाते जो हमारा वास्तविक साथी है| जब सारी दुनिया साथ छोड़ दे उस समय भी वो हमारे साथ रहता है परन्तु हम उसे नजरअंदाज कर देते हैं| जब अंत समय आता है, जब हम खुद को बेसहारा पाते हैं तब उस ईश्वर का सहारा हमें याद आता है|

मित्रों ये रिश्ते नाते, ये रूप सौंदर्य इन सबकी एक समय सीमा है और समय सीमा के बाद सब खत्म हो जायेगा और बचेगा तो सिर्फ आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध,, इसलिए उस ईश्वर से प्रेम करें जो आपके भीतर है, जो सदा आपका है, सदा आपके साथ है|

मित्रों यह लेख हमें स्वामी प्रसाद शर्मा जी ने भेजा है| प्रसाद जी के ज्यादा लेख आध्यात्म और आत्मज्ञान पर आधारित हैं| मोह माया से जुड़े इस लेख के लिए प्रसाद जी को धन्यवाद..