होली पर निबंध | Short Holi Essay in Hindi for 2023

March 2, 2023

Short Holi Essay in Hindi for 2023 for Class 7, 8, 9

होली पर निबंध: होली भारत के सबसे मुख्य त्यौहारों में से एक है। होली रंगों का त्यौहार है जो फाल्गुन के महीने में मनाया जाता है, रंगों के इस त्यौहार पर सभी लोग एक दूसरे को रंग लगाकर प्रेम भावना को बढ़ाते हैं। होली सारे दुःख और गम भूलकर आपसी मेल मिलाप को बढ़ावा देने वाला त्यौहार है। होली के दिन सभी लोग ईर्ष्या और दुश्मनी की भावना को भूलकर सौहार्द से एक दूसरे को गले लगाते हैं।

होली का त्यौहार सबसे ज्यादा खुशियां लेके आता है क्योंकि इस दिन हम सबसे ज्यादा हँसते हैं। लोगों के रंग से लिपे पुते चेहरे हर किसी को हंसने पर मजबूर कर देते हैं। होली का त्यौहार अब इतना प्रसिद्ध हो चुका है कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि अब ये विदेशों में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। भारत के अलावा अब कई देशों में लोग होली मनाने लगे हैं।

Happy Holi Wishes

कैसे मानते हैं होली का त्यौहार: Short Essay on Holi in Hindi

होली का त्यौहार दो पक्षों में मनाया जाता है। पहले पक्ष में होलिका दहन होता है। होलिका दहन को मनाने के पीछे कई पौराणिक कथायें प्रचलित हैं। होलिका दहन में घरों के बाहर चौराहों पर लकड़ी, घासफूस और गोबर के उपलों को जलाते हैं। घर की महिलायें रीति गीत गाती हैं और सभी लोग एक दूसरे से गले मिलकर प्रेम प्रकट करते हैं।

दूसरे पक्ष में रंगों से होली खेली जाती है। रंग बिरंगे गुलाल, पिचकारियां और छोटे छोटे रंग भरे गुब्बारे होली की सुंदरता को बढ़ाते हैं। सभी लोग अपने सगे सम्बन्धियों के घर घर जाकर गुलाल लगाते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं।

नन्हें मुन्ने बच्चों के लिए ये त्यौहार बहुत ही खास होता है क्योंकि इस दिन मस्ती करने और खेलने की पूरी छूट होती है। बच्चे एक दूसरे के चेहरे पर रंग लगाते हैं। पिचकारियों में रंग भरकर एक दूसरे पर चलाते हैं। आज कल बाजारों में एक से एक अच्छे डिजाइन की पिचकारियां मिलती हैं जो बच्चों को बहुत ही आकर्षित करती हैं।

फिर दोपहर को होली खेलने के बाद सभी लोग नहाते हैं और अपने चेहरे से रंग छुटाते हैं। घर की महिलायें पकवान बनाती हैं और नहा धोकर लोग पकवान खाते हैं। इस तरह पूरा दिन मस्ती करते बीतता है। होली पर पूरे भारत का रंग ही बदल जाता है।

क्यों मनाते हैं होली –

होली को मनाने के पीछे भक्त प्रह्लाद और राक्षसराज हिरण्यकश्यप की कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है।

भक्त प्रह्लाद की कहानी

Holika and Bhakt Prahlad Story

विष्णुपुराण की कथा के अनुसार, चारों ओर असुरों की शक्तियां बढ़ती जा रहीं थीं। असुरों का राजा हिरण्यकश्यप बहुत ही क्रूर शासक था। हिरण्यकश्यप नास्तिक था अर्थात वह ईश्वर को नहीं मानता था। हिरण्यकश्यप लोगों से खुद की पूजा करने को कहता था वह भगवान् विष्णु को अपना परम शत्रु मानता था।

हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके उनसे एक वरदान लिया था कि उसे कोई जीव जन्तु, नर या नारी, देवता या राक्षस कोई ना मार पाये और ना तो वह दिन में मरे, ना ही रात में, ना ही सुबह और ना ही शाम, ना ही घर के अंदर और ना ही बाहर, ना ही कोई शस्त्र उसे मार पाये।

ब्रह्मा जी से ऐसा वरदान प्राप्त करने के बाद हिरण्यकश्यप खुद को अमर मान चुका था। वह सभी लोगों से अपनी ही पूजा करने को कहता था और सभी लोग उससे डरकर उसी की पूजा करते थे।

हिरण्यकश्यप जैसे नास्तिक राक्षस के यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम “प्रह्लाद” रखा गया। प्रह्लाद पर श्री हरी अर्थात भगवान् विष्णु की कृपा थी। प्रह्लाद भगवान् विष्णु के परम भक्त थे। वह जहाँ भी जाते लोगों को श्री हरी की पूजा करने की बात कहते।

हिरण्यकश्यप को अपने पुत्र का विष्णु भक्त होना बिल्कुल पसंद नहीं था। उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को समझाया कि मैं ही ईश्वर हूँ और मुझसे बढ़कर पूरे ब्रह्मांड में कोई शक्तिशाली नहीं है। लेकिन भक्त प्रह्लाद पर अपने पिता की बातों का कोई असर नहीं होता, उन्होंने कई बार अपने पिता को समझाने की कोशिश की कि पिताजी भगवान् विष्णु ही परम शक्तिशाली हैं उन्हीं की दया से हमारा जीवन चलता है और आपको भी श्री हरी की उपासना करनी चाहिये।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को कई बार समझाया लेकिन जब प्रह्लाद नहीं माने तो हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने के कई प्रयत्न किये। लेकिन भगवान् विष्णु हमेशा भक्त प्रह्लाद की रक्षा करते थे। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को हाथी के पैर से कुचलने की कोशिश की, पहाड़ से गिराकर मारने की कोशिश की पर श्री हरी के भक्त को आखिर कौन मार सकता है। भगवान् विष्णु हमेशा उनकी रक्षा करते थे।

हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। होलिका के पास एक अदभुत चादर थी जिसे ओढ़ कर आग में भी बैठ जायें तो भी इंसान नहीं जलता था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली।

होलिका अपनी चादर ओढ़कर और प्रह्लाद को गोद में लेकर भयंकर आग में बैठ गयी। होलिका ने स्वयं चादर ओढ़ रखी थी ताकि वो ना जले लेकिन हवा के प्रवाह से वो चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गयी और प्रह्लाद आग में जलने से बच गये लेकिन होलिका धूं धूं करके जल गयी।

तभी से होली का पर्व मनाने की प्रथा प्रचलित हो गयी। इसलिए रंगों की होली मनाने से पहले होलिका दहन किया जाता है।

बाद ने विष्णु जी ने नरसिंह भगवान् का रूप धारण करके सांय के समय घर की चौखट पर बैठकर राक्षस हिरण्यकश्यप को मार डाला। भक्त प्रह्लाद की ये कथा आदिकाल से चली आ रही है।

कैसे मनायें सौहार्दपूर्ण होली –

होली खेलने के लिये लोग ज्यादातर रंगों का प्रयोग करते हैं। पुराने ज़माने में लोग प्राकर्तिक रंगों का प्रयोग करते थे जो आसानी से छूट जाते थे और हमारी त्वचा को किसी भी प्रकार का कोई नुक्सान नहीं पहुँचाते थे लेकिन आज कल बाजारों में केमिकल से बने हुए रंग मिलते हैं।

ये सभी रंग त्वचा के लिए तो हानिकारक तो हैं ही लेकिन अगर गलती से आखों में रंग चला जाये तो आँखों की रौशनी तक जा सकती है। इसलिए सभी लोगों से विनती है कि अच्छी क़्वालिटी के रंगों का इस्तेमाल करें।

गुलाल का इस्तेमाल करें और अगर कोई रंग नहीं लगवाना चाहता तो जबरदस्ती ना करें क्योंकि कई लोगों की त्वचा संवेदनशील होती है उनको रंगों से एलर्जी हो सकती है।

होली से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

1. अकबर के ज़माने में भी खूब होली मनाई जाती थी। मुग़ल काल में महारानी जोधाबाई और अकबर के होली खेलने का वर्णन मिलता है

2. भारत में होली फाल्गुन के महीने में मनाई जाती है। होली का मानना ऋतुराज बसंत के आने का संकेत है

3. होली अकेला त्यौहार है जिसमें बच्चों को मस्ती करने की पूरी छूट होती है

4. शाहजहाँ के ज़माने में ईद-ए-गुलाबी नाम से होली मनाई जाती थी

5. होली अकेला ऐसा त्यौहार है जिसमें कोई किसी की जाति या धर्म नहीं देखता बस सभी होली की मस्ती में डूब जाते हैं

6. होली खेलने का सबसे अच्छा समय सुबह से दोपहर तक का होता है

7. रंगों की होली खेलने से एक दिन पहले होलिका जलाना एक विशेष परंपरा है।

तो मित्रों इस होली खूब खुशियाँ मनायें, अपने जीवन में भी सुखों के रंग घोल दें

हिंदीसोच की ओर से आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनायें….

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