सुभाषिनी मिस्त्री [ Subhashini Mistry ] ~ जहाँ चाह वहां राह

February 6, 2018

जहाँ चाह वहां राह – Where There is a Will There’s a Way

Where There is a Will There's a Way13 अप्रैल 1971, पैंतीस वर्षीय श्री सधन चंद्र मिस्त्री एक सब्जी विक्रेता थे जो पश्चिमी बंगाल के हांस्पुकूर गाँव में रहते थे| उन दिनों गाँव में दूर दूर तक कोई अस्पताल नहीं थे| एक दिन सधन चंद्र बीमार पड़ गये और उन्हें सही उपचार नहीं मिल पाया और अंत में उनका एक छोटी सी बीमारी की वजह से देहांत हो गया|

सहसा ही उनके घर पर जैसे विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा, उनके घर में उनकी पत्नी सुभासिनी मिस्त्री (23 वर्ष) और 4 बच्चे थे जिनमें दो लड़कियाँ और दो लड़के थे| घर की दशा इतनी दयनीय थी कि वह अच्छे से ना खा सकते थे ना अच्छे पहन सकते थे|

सुभासिनी ने अब अपना घर चलाने का निर्णय किया क्यूंकी इसके अलावा अब कोई विकल्प नहीं बचा था| परिवार को पालने के लिए अब सुभासिनी ही बाज़ार जाकर सब्ज़ी का कारोबार देखती थी|

पति को अच्छा इलाज़ नहीं मिल पाने के कारण वह मन ही मन बहुत दुखी होती थी इसी कारण एक दिन उसने निर्णय किया कि वह इस गाँव में एक अस्पताल बनवाएगी जिससे कोई भी ग़रीब बीमारी से नहीं मरेगा|

इसी संकल्प को आँखों में संजोए सुभासिनी दिन रत मेहनत करती थी| जब कभी वह अपने इस विचार को लोगों के सामने रखती तो सभी उसका मज़ाक उड़ाते थे कि अपनी टूटी झोपड़ी को ठीक करना के पैसे तो हैं नहीं और अस्पताल की बात करती है| लेकिन उसको इन बातों से कोई असर नहीं पड़ता था|

समय का चक्र चलता गया और इसी तरह करीब 20 साल बीत गये, अब सुभासिनी के बच्चे भी बड़े हो गये थे| उसने अपने घर पर ही एक छोटा सा क्लिनिक शुरू किया जहाँ हर सप्ताह डॉक्टर साहिब मरीजों को देखने आते थे| अब तो सुभासिनी धीरे धीरे पूरे गाँव में प्रसिद्ध होने लगी, दूर दूर तक उसके नाम की चर्चा होने लगी |

subhasini mistry

उनकी दोनों लड़कियों की शादी हो चुकी थी, अब उनके परिवार की स्थिति भी काफ़ी सुधार चुकी थी| बड़ा बेटा मेहनती था, वो गाँव में ही खेती करता था और छोटा बेटा जो पढ़ाई में होशियार था, सुभासिनी ने उसका प्रवेश कलकत्ता मेडिकल कलेज़ में करा दिया था| जब बेटे ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की तो उनका सपना अब एक बड़ा अस्पताल खोलना था|

1993 में सुभासिनी ने ट्रस्ट खोला, और इसी ट्रस्ट की भूमिका से 1995 में अस्पताल की पहली नींव रखी गयी| अस्पताल को सार्वजनिक रूप से खोल दिया गया जिससे सैकड़ों लोगों को इसका लाभ प्राप्त हुआ|

बाद में ये अस्पताल West Bengal Clinical Establishment Act. of 1950 के अंतर्गत रगिस्टर्ड करा दिया गया| सुभासिनी और उसके बेटे ने अपनी मेहनत और लगन से अस्पताल को नई दिशा दी और लोगों के लिए खुशी का द्वार खोल दिया|

सुभासिनी देवी आज भी कलकत्ता मार्केट में सब्जी बेचती हैं..…

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