Lal Bahadur Shastri In Hindi | लाल बहादुर शास्त्री का जीवन

January 13, 2016
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लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का पूरा नाम लालबहादुर शारदाप्रसाद श्रीवास्तव था | उनका जन्म 2 October 1904 को मोगलसराई नामक गांव (जि. वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था | उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद और माता का नाम रामदुलारी देवी था | उनका विवाह 1928 में श्रीमति ललिता शास्त्री से हुआ था | अचानक हार्ट अटैक आने के वजह से शास्त्री जी की मृत्यु 61 वर्ष की उम्र में 11 जनवरी 1966 को हो गयी थी | शास्त्रीजी का जन्म का नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था | 1917 को 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने निर्णय लिया कि वह अब श्रीवास्तव (surname) का उनके नाम में उपयोग नहीं करेंगे | उन्होंने इस सरनेम को त्याग दिया । वारणसी की इंटरनेशनल एयरपोर्ट को अब उनके नाम से जाना जाता है |

प्रसंग – 1

Lal Bahadur Shastri Childhood Story in Hindi
नन्हे का साहस

उसका नाम था नन्हे | कद भी छोटा था और आर्थिक विपन्नता भी थी | तब भी वह सहपाठियों के साथ गंगापार पढ़ने जाता था | माझी को गण पार करने के लिए नाव का किराया पहले देना होता था, तभी वह गंगा पार कराता था |

एक दिन की बात है, नन्हे के पास मात्र दो पैसे ही थे | माझी ने किराया माँगा तो वह बोला, ‘मेरे पास तो दो ही पैसे हैं, यदि यह भी में तुम्हें दे दूंगा तो दोपहर को खाऊंगा क्या ?’

माझी ने उसकी एक न सुनी और नौका से उतार दिया स्कूल जाना भी जरुरी था, पैसे भी नहीं थे | नन्हे ने सोच-विचार किया | फिर पुस्तक एक अन्य मित्र को दे दी और स्वयं नदी की तीव्र धारा में कूद गया |
उस नन्हे के साहस को देख कर सभी ने दांतो टेल ऊँगली दबा ली, साथ ही घबराहट भी हुई | लेकिन नन्हे ने जैसे-तैसे नदी का वह सफर तैरकर तय कर लिया |
बाद में यही नन्हे बालक लाल बहादुर शास्त्री के नाम से जाना गया |

प्रसंग – 2

When Lal Bahadur Shastri was President
पद नहीं, व्यक्ति का सम्मान करो

यह बात उन दिनों की है जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे | एक दिन वह एक कारखाने में गए जहाँ साड़ियां बना करती थीं | उनके साथ उनकी पत्नी श्रीमती ललिता शास्त्री भी थीं |
कारखाने में जाकर श्रीमती ललिता शास्त्री ने एक साडी पसंद की, लाल बहादुर शास्त्री कारखाने के मालिक को उसकी कीमत देने लगे लेकिन उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया |
तब शास्त्रीजी बोले, ‘ आज जब में प्रधानमंत्री हूँ तब तुम पैसे नहीं ले रहे लेकिन कल जब में प्रधानमंत्री नहीं रहूँगा, तब भी क्या तुम मुझे साड़ी निशुल्क ही दोगे |’
इतना सुनकर कारखाने का मालिक निरुत्तर हो गया और उनसे चुपचाप पैसे रख लिए

प्रसंग – 3

Pure Soul of Shastriji
शास्त्रीजी की सादगी

बात उन दिनों की है जब लाल बहादुर शास्त्री रेल-मंत्री थे | वह ट्रेन में सफर कर रहे थे | उन्होंने प्रथम श्रेणी के डिब्बे में अपने ही कद के एक मरीज को अपनी सीट पर लेटा दिया और स्वयं उनकी सीट पर तृतीय श्रेणी के डिब्बे में चादर ओढ़कर सो गए |

थोड़ी देर बाद टिकिट निरीक्षक आया और उस मरीज को वहां सोता देख बुरा-भला कहने लगा | जब वह बड़बड़ा रहा था तो शास्त्रीजी की नींद खुल गई और उन्होंने टिकिट निरीक्षक को अपना परिचय पत्र दिखाया |

परिचय पत्र देखकर वह हक्का-बक्का रह गया | फिर संयत होकर बोला, ‘सर आप और तृतीय श्रेणी के डिब्बे में ! चलिए, में आपको आपकी सीट पर पहुंचा दूँ |
शास्त्रीजी मुस्कराते हुए बोले, ‘भैया मुझे नींद आ रही है, तुम क्यों मेरी मीठी नींद में खलल डाल रहे हो ? इतना कह वह चादर ओढ़कर पुनः सो गए |

प्रसंग – 4

Thoughts of Shastri ji
मुझे नींव का पत्थर ही रहने दो

लाल बहादुर शास्त्री हंसमुख स्वाभाव के थे | लोग उनकी भाषण देने की कला, निस्वार्थ सेवाभावना जैसे गुणों के कायल थे | लेकिन जब वह लोकसेवा मंडल के सदस्य बने तो संकोची स्वाभाव के हो गए थे | वह समाचार-पत्रों में नाम छपवाने, प्रशंसा आदि के इच्छुक नहीं थे |

एक दिन उनके मित्र ने पूछा, ‘आप समाचार-पत्रों में नाम छपवाने से परहेज क्यों करते हैं ?’

तब शास्त्रीजी बोले, ‘लाला राजपतराय ने लोकसेवा मंडल के कार्य की सीख देते हुए बताया था कि ताजमहल में दो तरह के पत्थर लगे हैं – एक संगमरमर के, जिनकी प्रशंसा सभी लोग करते हैं| दूसरे वह पत्थर भी हैं जो ताजमहल की नींव में लगे हैं| लेकिन वही ताजमहल का आधार हैं| उनके यह शब्द मुझे आज भी याद हैं, इसलिए में नींव का पत्थर ही बने रहने का इछुक हूँ|’

Name- Parul Agrawal
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