तीर्थंकर महावीर स्वामी का जीवन-परिचय : {Biography} Jain Lord Mahavira Swami in Hindi

June 24, 2016

Lord Mahavira Swami Biography in Hindi

महावीर स्वामी(Mahavira Swami) का जन्म एक राजसी क्षत्रिय परिवार में हुआ। इनके पिता राजा सिध्दार्थ और माता रानी त्रिशला थीं। महावीर जी का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। इनके जन्म दिवस को आज महावीर जयंती के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म स्थल कुण्डग्राम था जो अब बिहार में है।

महावीर स्वामी के बचपन का नाम “वर्धमान” था। बचपन में ही ये बहुत वीर स्वभाव के थे इसलिए इनका नाम “महावीर” पड़ा। यूँ तो महावीर एक राजसी परिवार से थे, उनका रहन सहन उच्च कोटि का था और किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन वास्तव महावीर जी का जन्म दुनिया को ज्ञान बाँटने के लिए ही हुआ था।

राजसी वैभव के बावजूद उनका मन राजपाट में बिल्कुल नहीं लगता था। ऊँचे महल और शानशौकत उन्हें फीकी नजर आती थी। राजा सिध्दार्थ ने उनका विवाह यशोधरा से करने का प्रस्ताव रखा तो उसके लिए भी महावीर स्वामी तैयार नहीं थे। लेकिन पिता की आज्ञा की वजह से उन्होंने यशोधरा से विवाह किया और इससे उनकी एक सुन्दर पुत्री प्रियदर्शना ने जन्म लिया।

हालाँकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में ऐसी मान्यता है कि वर्द्धमान का विवाह यशोधरा से हुआ था लेकिन दिगम्बर सम्प्रदाय में ऐसी मान्यता है कि वर्द्धमान का विवाह नहीं हुआ था| वह बाल ब्रह्मचारी थे|

जब महावीर 30 वर्ष के थे, उस समय वह राजसी वैभव और सारे सुख सम्पन्नता छोड़कर सच्चे ज्ञान की खोज में निकल पड़े। महावीर ने अपने पिता, माता, पत्नी, पुत्री, राजमहल सब कुछ त्याग दिया और ज्ञान की खोज में निकल पड़े। अब वह जंगल में एक अशोक के वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाया करते थे।

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करीब साढ़े बारह साल लगातार कठोर तपस्या करने के बाद महावीर स्वामी ने सच्चे ज्ञान की प्राप्ति की। वो दिन शायद धरती माँ के लिए एक सुनहरा दिन रहा होगा, जब उनका एक पुत्र महावीर दुनिया को बदलने वाला था।

महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें (चौबीस वें) और अंतिम तीर्थकर बने। इसके बाद महावीर स्वामी ने अगले 30 साल तक लगातार पूरे दक्षिणी एशिया में जैन धर्म का प्रचार किया। लोगों को जीवन का सच्चा ज्ञान दिया, उन्हें सिखाया कि ईश्वर ने हमें धरती पर क्यों भेजा है? और एक अच्छा जीवन कैसे जिया जाये?

महावीर स्वामी पंचशील सिद्धांत व शिक्षाएं –

महावीर स्वामी ने लोगों को जीवन का एक मूल मन्त्र दिया। उनकी दी हुई शिक्षाएं इस प्रकार हैं –

सत्य
अहिंसा
अस्तेय
ब्रह्मचर्य
अपरिग्रह

सत्य – महावीर जी कहते हैं कि सत्य सबसे बलवान है और हर इंसान को किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। सदा सत्य बोलो।

अहिंसा – दूसरों के प्रति हिंसा की भावना नहीं रखनी चाहिए। जितना प्रेम हम खुद से करते हैं उतना ही प्रेम दूसरों से भी करें। अहिंसा का पालन करें

अस्तेय – महावीर स्वामी कहते हैं कि दूसरों की चीज़ों को चुराना और दूसरों की चीज़ों की इच्छा करना महापाप है। जो मिला है उसमें संतुष्ट रहें।

बृह्मचर्य – महावीर जी कहते हैं कि बृह्मचर्य सबसे कठोर तपस्या है और जो पुरुष इसका पालन करते हैं वो मोक्ष की प्राप्ति करते हैं

अपरिग्रह – ये दुनियां नश्वर है। चीज़ों के प्रति मोह ही आपके दुखों का कारण है। सच्चे इंसान किसी भी सांसारिक चीज़ का मोह नहीं करते

निर्वाण
भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया।

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