{श्री कृष्णा} हो काल गति से परे चिरंतन | कुमार विश्वास
हो काल गति से परे चिरंतन ~ कुमार विश्वास जी की कविता
सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास जी इस कविता को सुनकर में इसे बिना शेयर किये नहीं रह पाया| इस कविता ने मुझे इतना मंत्रमुग्ध किया कि इसको सुनते ही मैंने सब कार्य छोड़कर इसे हिंदीसोच पर पब्लिश कर दिया|
मैं हिंदीसोच के पाठकों से कहना चाहूंगा कि इस कविता कि सुनें नहीं बल्कि महसूस करें| त्रिलोक के स्वामी एवं भगवान विष्णु के अवतार, श्री कृष्णा से जुड़ी ये कविता आपको अंदर तक आनंदित कर देगी,
आइये कविता का आनंद लेते हैं –
हो काल गति से परे चिरंतन,
अभी यहाँ थे अभी यही हो।
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।
तुम्हारी राधा को भान है तुम,
सकल चराचर में हो समाये।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।
न द्वारका में मिलें बिराजे,
बिरज की गलियों में भी नहीं हो।
न योगियों के हो ध्यान में तुम,
अहम जड़े ज्ञान में नहीं हो।
तुम्हें ये जग ढूँढता है मोहन,
मगर इसे ये खबर नहीं है।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
अगर कहीं हो तो तुम यही हो।
कविता आपको कैसी लगी? ये हमें कमेंट करके जरूर बताइये और हिंदीसोच से अपना प्रेम बनाये रखें, हमसे जुड़े रहें और नवीन लेखों को अपने ईमेल पर प्राप्त करने के लिए हमारा ईमेल सबक्रिप्शन लेना ना भूलें| धन्यवाद
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