पुनर्जन्म पर शोध और मानव की अज्ञानता

September 27, 2017

मन की अज्ञानता और पुनर्जन्म पर शोध विचार

निम्नलिखित मामलों में एक जिज्ञासु मन अपने अज्ञान के बारे में जागरूक हो जाता है :-

1. हम कहाँ से आते हैं और हम कहाँ जाएंगे?
2. हम यहाँ क्यों आते हैं और हमें इस उद्देश्य की याद क्यों नहीं है?
3. धर्मपरायण होने के बावजूद हमें दुःख क्यों भोगने पड़ते हैं?

यहाँ एक राजा की कहानी है जो स्वयं एक मूर्ख व्यक्ति को देखना चाहता था। उसने मूर्ख की तलाश में कई लोगों को भेजा। वे कई बेवकूफों के यहाँ गए लेकिन कोई भी परिवार यह स्वीकार नहीं करता कि उनका तथाकथित व्यक्ति पूरी तरह से मूर्ख है, बल्कि उन्होंने दावा किया कि वह समझदार है। बेवकूफों को खोजने में असफल सभी लोग एक-एक करके वापस आ गए लेकिन अभी एक व्यक्ति रह गया था। राजा को उम्मीद थी कि वह जरूर मूर्ख व्यक्ति को लेकर लौटेगा।

उस व्यक्ति ने लंबे समय तक खोज की लेकिन वह भी असफल रहा और कुछ महीनों के बाद वह भी लौट आया। उस समय तक राजा मृत्यु-शैय्या पर लेटा अपनी मृत्यु के इंतजार में था। आखिरी व्यक्ति को लौटा देख कर राजा ने उससे पूछताछ की। उसने अपनी असफलता स्वीकार कर ली और फिर राजा से पूछा कि वह बिस्तर पर क्यों लेटे हैं। राजा ने उसे बताया कि वह जाने वाले हैं। कहाँ, कब और कैसे – क्रमशः उस व्यक्ति ने पूछा।

राजा ने इन सभी सवालों के बारे में अपनी अज्ञानता व्यक्त की। साथी ने उसे ही एक वास्तविक मूर्ख माना, जो कहीं जाने के लिए तैयार है परंतु गंतव्य स्थान, समय और यात्रा के साधनों के बारे में नहीं जानता है।

इस कहानी का तात्पर्य यह है कि हम सब (एक संत को छोड़कर) इन मामलों में अज्ञानी हैं। शास्त्रों (उपनिषद) ने लोगों को चेतावनी दी है कि इन सवालों के जवाब जाने बिना मरने के बाद पुनर्जन्म के माध्यम से वापस लौटना पड़ता है। पहले पैराग्राफ में दिये गये सवालों के बारे में अपनी समझ के अनुसार निम्नलिखित प्रस्तुत है :-

जिस तरह से एक विशेष यंत्र के माध्यम से बहने वाला करेंट, ऊर्जा के अन्य रूपों में परिवर्तित हो सकता है, जैसे गर्मी, ध्वनि, प्रकाश, चुंबकत्व। यह गैजिट के अनुसार गर्मी या शीतलता पैदा कर सकता है, जबकि यह स्वयं न तो गर्म है और न ही ठंडा है। इसी तरह, जीवन शक्ति (आत्मा) एक विशेष प्रजाति में प्रवेश करती है और शरीर को जीवित रखती है, और जब आत्मा शरीर को छोड़ देती है तो प्राणी निष्क्रिय हो जाता है।

शरीर और व्यवहार (स्वार्थी या परार्थी या मिश्रित) उसके पिछले कर्मों और मानसिक प्रवृत्तियों पर निर्भर करते हैं तथा जीवात्मा इनके दुःख-सुख भोगने के कारण भोक्ता कहलाती है।

जीवन के दौरान हम स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण पाप कमाते हैं और दूसरों की सहायता एवं अच्छा व्यवहार करके पुण्य कमाते हैं। दूसरे शब्दों में हम अपने कार्यों के परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियायेँ इकट्ठी करते हैं। यह तब तक चलता रहता है जब तक हम अपने स्वार्थ को छोडकर अच्छाई अपना लेते हैं।

उस स्थिति में कोई कार्रवाई स्वार्थ-बुद्धि के साथ नहीं की जाती बल्कि मानवता के कल्याण के इरादे से एक समर्पित कर्तव्य के रूप में की जाती है। सम्पूर्ण सृष्टि भगवान और प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती है।

एक नवजात शिशु सभी के लिए खुशी का एक स्रोत है। बाद में बड़े होने पर वह कुछ प्रवृत्तियों को अपनाता है जो उसे अपने माता-पिता और विभिन्न संबंधों के माध्यम से मिलती हैं। तब कुछ लोग उसे पसंद करते हैं एवं दूसरों को वह नापसंद होता है।

ReBirth - Punarjnm

पुनर्जन्म

कर्म (एक्शन) सिद्धांत के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि भौतिक शरीर के अंतिम क्षणों में मन अपनी भावनाओं के अनुसार एक प्रकार की प्रतिज्ञा करता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमें पुनर्जन्म में अपने कर्मों की प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन अपनी बुद्धिमत्ता के अनुसार हमें अन्य चीजों को चुनने का विकल्प है। यह तब होता है जब कोई जीवन के अंत में आध्यात्मिकता अपनाने का निश्चय करता है। निश्चित रूप से अगले जन्म में वह आध्यात्मिकता अपनाता है।

जब कोई व्यक्ति खुद को आत्मा के रूप में पहचान लेता है तो पुनर्जन्म की संभावना समाप्त हो जाती है। अपने अंतिम जीवन में एक भक्त को पहले के जीवन के शेष कर्म प्रभावों के कारण भुगतना पड़ता है। उन कर्मों के प्रभाव तीव्र हो सकते हैं लेकिन आत्मा उसकी रक्षा करती है।

सामान्य मृत्यु के मामले में, एक व्यक्ति आमतौर पर शरीर की अपनी चेतना खो देता है और उसका सम्पूर्ण ध्यान आती-जाती साँस पर केन्द्रित हो जाता है। उस समय शारीरिक कष्टों से मुक्त मन कुछ प्रतिज्ञाएं करता है और अचानक एक प्रकार की गहरी नींद में फिसल जाता है। कर्म प्रभावों के आधार पर और प्रतिज्ञा के अनुसार पुनर्जन्म लेता है। पुनर्जन्म में भी अपनी स्वतंत्र इच्छा के कारण वह नए कर्म भी करता है और नए उद्देश्यों के लिए कामना करता है। इस प्रकार पुनर्जन्म लेने की श्रृंखला जारी रहती है। यह केवल तब होता है जब कोई व्यक्ति जागरूकता के अलावा नई आकांक्षाओं को बंद कर देता है तथा वह खुशी से पहले के जीवन में किए गए पापों के भार को साफ करता है।

यहाँ हम यह ध्यान रख सकते हैं कि पाँच इंद्रियों के कार्यों के कारण विभिन्न शरीर के अंगों (हाथ, पैर, इंद्रियों इत्यादि) के माध्यम से स्वार्थपूर्ण कार्यों के कारण पाप कमाए जाते हैं, और जब हमारे सभी कार्य दूसरों की वास्तविक खुशी की दिशा में निर्देशित किये जाते हैं तो हम सदगुणों के भंडार बनते हैं।

किसी व्यक्ति में जागृति ज्ञान का परिणाम है और स्वयं की आत्मा से प्रेम भक्ति कही जाती है। चूँकि यह गैर भौतिकवादी तत्त्व आत्मा सभी में मौजूद है, अतः वह दूसरों की वास्तविक खुशी के लिए कार्य करता है। इस प्रकार भक्ति के सभी अधिकारी हैं।

आमतौर पर हिंदू धर्म में अपने अंतिम जीवन में एक भक्त की उच्च आकांक्षा अवतारित भगवान में या अपने आध्यात्मिक शिक्षक के प्रति समर्पण की होती है। सबसे घनिष्ठ संबंध का आनंद लेने के लिए मानव जाति के प्रति प्रेम एवं सेवा का भाव उसका लक्ष्य होता है।

सबसे भाग्यशाली प्राणी वह है जिसने शुरुआत में उठाए गए तीनों प्रश्नों के रहस्य को ज्ञान और आध्यात्मिक अनुभव तथा बुद्धिमानी की तीसरी आंख के माध्यम से जान लिया है।

पुनर्जन्म और मानव ज्ञान पर आधारित यह लेख हमें स्वामी प्रसाद शर्मा जी ने भेजा है| स्वामी जी के अन्य लेख भी हिंदीसोच पर प्रकाशित होते आये हैं| स्वामी जी के सभी लेख उच्च कोटि के हैं, यहाँ हम उनके लेखों की लिस्ट दे रहे हैं जिन्हें आप पढ़ सकते हैं..

प्रसाद जी के पूर्व प्रकाशित लेख इस प्रकार हैं:-
आध्यात्मिकता का अर्थ
मानव जीवन क्या है
जीवन का लक्ष्य क्या है ?
मानव मन और ब्रह्मांड की सीमा
मृत्युदेव : अध्यात्म के महान गुरु
निष्काम प्रेम की शर्तें
बुजुर्ग का पर्स : मोह माया में फंसे इंसान का जीवन