Tulsidas Ke Dohe in Hindi गोस्वामी तुलसीदास के दोहे

February 5, 2019
Goswami Tulsidas Ji Ke Dohe

Goswami Tulsidas Ji Ke Dohe

तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित

दोहा(Dohe) – तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।।

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि मीठे वचन बोलने से चारों ओर खुशियाँ फ़ैल जाती हैं सबकुछ खुशहाल रहता है। मीठी वाणी से कोई भी इंसान किसी को भी अपने वश में कर सकता है।

दोहा(Dohe) – दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि दया ही हर धर्म का मूल है और घमंड या अभिमान ही पाप का मूल है। जब तक आपके शरीर में प्राण हैं दया की भावना को नहीं छोड़ना चाहिए

दोहा(Dohe) – बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय ।
आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय ।।

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि बिना “तेज” वाले पुरुष का हर जगह अपमान होता है, कोई भी उसकी बात को नहीं सुनता। जैसे जब आग बुझ कर राख बन जाती है तो उसमें कोई ताप नहीं होता और किसी काम की नहीं रहती।

दोहा(Dohe) – काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान ।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान ।।

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति के मन में काम, क्रोध, आलस्य, लालच और अहंकार से भर जाता है। तो एक ज्ञानी व्यक्ति और मूर्ख अंतर नहीं रह जाता। अर्थात ज्ञानी व्यक्ति भी मूर्ख के समान हो जाता है

दोहा(Dohe) – मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक ।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित विवेक ।।

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) का कहना है कि घर के मुखिया को मुँह की तरह होना चाहिए, जैसे मुँह ही सब कुछ खाना पीता है लेकिन वो पूरे शरीर का पालन पोषण करता है

दोहा(Dohe) – तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि अच्छी वेश भूषा को देखकर मूर्ख व्यक्ति ही नहीं बल्कि चालाक मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं। जैसे मोर दिखने में इतना सुन्दर है लेकिन उसका भोजन साँप होता है

दोहा(Dohe) – तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान।
तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहु गत जान।।

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि तन की सुंदरता, अच्छे गुण, धन, यश और धर्म के बिना भी जिन लोगों में अभिमान है। ऐसे लोगों पूरा जीवन दुःख भरा होता है जिसका परिणाम बुरा ही होता है।

दोहा(Dohe) – बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि मधुर भाषा और अच्छे वस्त्रों से किसी व्यक्ति के बारे में ये नहीं जाना जा सकता कि वह अच्छा है या बुरा। मधुर भाषा और अच्छे वस्त्रों से किसी के मन के विचारों को नहीं जाना जा सकता। जैसे शूपर्णखां, मरीचि, पूतना और रावण के वस्त्र अच्छे थे लेकिन मन मैला था

दोहा(Dohe) – तुलसी’ जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि दूसरों की बुराई करके स्वयं प्रतिष्ठा पा जाने का विचार बहुत ही मूर्खतापूर्ण है। ऐसे दूसरों की बुराइयाँ करके अपनी तारीफ करने वालों के मुख पर एक दिन ऐसी कालिख लगेगी जो धोने से भी नहीं मिटेगी

दोहा(Dohe) – तुलसी’ किएं कुंसग थिति, होहिं दाहिने बाम।
कहि सुनि सुकुचिअ सूम खल, रत हरि संकंर नाम।

अर्थ – तुलसीदास जी(Tulsidas) कहते हैं कि बुरी संगति से अच्छे लोग भी बदनाम हो जाते हैं और अपनी स्वयं की प्रतिष्ठा को गवाँकर लघुता को प्राप्त होते हैं। बुरी संगत वाले किसी स्त्री या पुरुष का नाम देवी देवता के नाम से रख देने पर भी वो बदनाम ही रहते हैं। ऐसे लोगों का कहीं सम्मान नहीं होता

दोहा(Dohe) – सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस|
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

तुलसीदास जी कहते हैं कि, मंत्री, वैध और गुरु; अगर ये तीनों भय या किसी लाभ की आस में प्रिय वचन बोलते हैं अर्थात हित की बात ना कहकर किसी लाभ की वजह से अच्छी बातें बोलते हैं तो जल्दी ही क्रमशः राज्य, शरीर और धर्म का नाश हो जाता है

दोहा(Dohe) – सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि|
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||

तुलसीदास जी कहते हैं कि आपका हरहाल में हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो व्यक्ति सर माथे से लगाकर नहीं रखता वह आगे चलकर पछताता है और उसका अहित जरूर होता है

दोहा(Dohe) – नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु|
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||

तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम का नाम कल्पतरु (यानि हर इच्छा को पूरी करने वाला) और कल्याण निवास (यानि मोक्ष का घर) है जिसका स्मरण करने से भांग के समान (यानि निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी की तरह पवित्र हो गया है

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