भारतीय सभ्यता और हिन्दी की दुर्दशा

October 29, 2017

भारत और विज्ञान का बहुत प्राचीनतम रिश्ता रहा है। प्राचीन ग्रंथो और वेदों के अनुसार विज्ञान और भारतीय सभ्यता एक दूसरे के समानांतर रहे हैं। यहाँ की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता है जोकि समस्त सभ्यताओं की जड़ भी मानी जाती है। भारत आदिकाल से ही जगद्गुरु के नाम से जाना जाता रहा है।

विज्ञान के क्षेत्र में भारत हमेशा से ही आगे रहा है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि “आज का आधुनिक विज्ञान आपको जहाँ तक ले के जाता है वह सब लाखों वर्ष पूर्व ही हमारे वेदों में निहित है।” यह कथन पूर्णतः सत्य है|

आर्यभट, रामानुजम, चरक, सुश्रुत आदि महान वैज्ञानिक हमारे भारत देश में जन्में हैं जिन्होंने इस दुनिया को नई दिशा दी और जीवन जीने तरीका बताया। इसका मुख्य कारण था “भाषा”| उन्होंने अपनी भाषा में ज्ञान अर्जित किया और उसको पूरे विश्व भर में फैलाया|

भारतेन्दु हरीशचंद्र के अनुसार:- “निज़ भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौ मूल”

Essay on Hindi

आज हिन्दी भाषा की दुर्गति को देखकर बड़ा दुख होता है| हमारे पूर्वजों ने हमें जहाँ छोड़ा था हम आज उससे काफ़ी पीछे हो चुके हैं| क्यूँ? मन में ये सवाल कहीं ना कहीं कचोटता सा प्रतीत होता है|

हमारे देश मैं एक से एक अमीर लोग आज भी हैं, पर ऐसे पैसे और कमाई से क्या फ़ायदा कि हम आज भी अपने पैरों पर खड़े नही हैं| हमारा देश अपने विकास के लिए विदेशी कम्पनियों और दूसरे देशों की मदद पर निर्भर है| हमारे देश की सभी बड़ी कम्पनियां, विदेशी कम्पनियों के लिए काम करती हैं| विदेशी प्रोजेक्टों को outsource करतीं हैं|

यहाँ लेबर कॉस्ट सस्ता होने की वजह से विदेशी कम्पनियाँ अपने छोटे-छोटे काम हमें सौंप देती हैं और खुद अपने रिसर्च सेंटरों में नयी वैज्ञानिक खोज करती हैं और हम विदेशी कम्पनियों में नौकरी पाकर, उनका नौकर बनकर खुद को सफल होता महसूस करते हैं|

ऐसा नहीं है कि यहाँ के लोग सक्षम नहीं है लेकिन लोग अपने को पहचान नहीं पा रहे हैं| यही कारण है कि भारत आज भी एक विकासशील देश है विकसित नहीं, क्यूंकी हिन्दी ही हमारी पहचान है और हमें इसे मानना होगा|

मैं जानता हूँ कि India में प्रतिभा की कमी नहीं है लेकिन English में problem की वजह से वो आगे नहीं आ पाते हैं| कभी सोचा है आपने कि सारे invention विदेशों में ही क्यूँ होते हैं यहाँ क्यूँ नहीं? क्यूंकी मेरा मानना है कि जितना innovative कोई इंसान अपनी मात्रभाषा में हो सकता है वैसा किसी और भाषा में possible नहीं है| देखिए एक इंसान के आगे आने से कुछ नहीं होगा बल्कि पूरे भारत को प्रयास करना होगा तभी इस देश का और समूची मानव जाती का संभव है|

हिंदी हमारी मात्र भाषा है| आपको अच्छी नौकरी पानी है और उसके लिए अंग्रेजी सीखना पड़ रहा है तो सीखिए, सीखने में बुराई नहीं है लेकिन अंग्रेजी सीखने के बाद अपने अस्तित्व को ना भूलिए|

चलिए आपको “विकास” का एक उदारण देता हूँ –

“चाइना में जिस व्यक्ति को चाइनिस आती है वह डॉक्टर भी बन सकता है, इंजिनियर भी बन सकता है, अंग्रेजी नहीं आती कोई बात नहीं वह सब कुछ कर सकता है क्यूंकि वहां के लोग चाइनिस ही बोलते हैं और चाइनिस में ही पढ़ते हैं और चाइना एक विकसित देश है”

“जापान में आपको अंग्रेजी नहीं आती कोई बात नहीं, आपको जापानी आती है तो आप इंजिनियर, डॉक्टर कुछ भी बन सकते हैं और जापान भी विकसित देश है क्यूंकि वहां के लोग अपनी भाषा में ही सीखते हैं”

“हमारे भारत में आपको अंग्रेजी नहीं आती तो आप डॉक्टर नहीं बन सकते, आप इंजिनियर नहीं बन सकते, आपको छोटी सी नौकरी के लिए भी अंग्रेजी भाषा सीखनी होगी क्यूंकि यहाँ हिंदी की कद्र नहीं है| जो लोग अंग्रेजी बोलते हैं उन्हें बहुत ही सभ्य और ज्ञानी माना जाता है और इसीलिए हम अब तक विकासशील ही हैं”

मैं युवा पीढ़ी से अनुरोध करूँगा कि हिंदी को अपनाइए| ये आपकी मात्र भाषा है और भाषा के विकास के साथ ही इस देश का भी विकास संभव है| मैं हिंदी की कद्र करता हूँ यह मेरी मात्रभाषा है| जय हिन्द! जय हिंदी!!